महाराणा प्रताप के शौर्य और वीरता की गाथा बहुत ही रोचक और अद्भुत हैं जिसे सुनकर रोम-रोम ऊर्जावान हो जाता है। महाराणा प्रताप में कितना शौर्य और साहस रहा होगा जिसकी वजह से अकबर भी उनसे डरता था। तभी तो कभी राणा के सम्मुख नहीं आया। अगर अकबर राणा के सम्मुख आया होता तो उसकी मृत्यु निश्चित थी। अगर उस समय भारतीय राजा आपसी मतभेद भुला देते तो अकबर जैसे लुटेरे दिल्ली की गद्दी पर नहीं बैठते। कुछ गद्दारों ने भारत माँ के शीश को झुका दिया तो कुछ वीर सपूतों ने भारत माँ का सिर गर्व से उठा दिया
राजस्थान के वीर सपूत, महान योद्धा और अदभुत शौर्य व साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। लेकिन राजस्थान में राजपूत समाज का एक बड़ा तबका उनका जन्मदिन हिन्दू तिथि के हिसाब से मनाता है। चूंकि 1540 में 9 मई को ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीया तिथि थी, इसलिए इस हिसाब से उनकी जयंती 2 जून को मनाई गई।
महाराणा प्रताप का जन्म महाराजा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर में हुआ था। उन्हें बचपन और युवावस्था में कीका नाम से भी पुकारा जाता था। ये नाम उन्हें भीलों से मिला था जिनकी संगत में उन्होंने शुरुआती दिन बिताए थे। भीलों की बोली में बेटे को कीका बोला जाता है
महाराणा प्रताप के पास चेतक नाम का एक अदम्य साहस वाला घोड़ा था प्रताप की वीरता की कहानियों में चेतक का अपना स्थान है। उसकी फुर्ती, रफ्तार और बहादुरी की कई लड़ाइयां जीतने में अहम भूमिका रही।
महाराणा प्रताप ने राष्ट्र रक्षा व् स्वाभिमान के लिए मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ीं लेकिन हल्दीघाटी का युद्ध सबसे ऐतिहासिक था। जिसमें उनका मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना से आमना-सामना हुआ। 1576 में हुए इस जबरदस्त युद्ध में करीब 20 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया। यह मध्यकालीन भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध है। इस युद्ध में प्रताप का घोड़ा चेतक जख्मी हो गया था।
इस युद्ध के बाद राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए लेकिन महाराणा ने कभी भी स्वाभिमान को नहीं छोड़ा। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की, और कई सालों तक संघर्ष किया लेकिन पुन;1582 में दिवेर के युद्ध में राणा प्रताप ने उन क्षेत्रों पर फिर से कब्जा जमा लिया था। जो कभी मुगलों के हाथों गंवा दिए थे। कर्नल जेम्स टॉ ने मुगलों के साथ हुए इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा था। अन्तत;1585 तक लंबे संघर्ष के बाद वह मेवाड़ को मुक्त करने में सफल रहे।
महाराणा प्रताप जब गद्दी पर बैठे थे। उस समय जितनी मेवाड़ भूमि पर उनका अधिकार था। पूर्ण रूप से उतनी भूमि अब उनके अधीन थी। 1596 में शिकार खेलते समय उन्हें चोट लगी जिससे वह कभी उबर नहीं पाए। 19 जनवरी 1597 को सिर्फ 57 वर्ष आयु में चावड़ में उनका देहांत हो गया।
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